दुनिया में भारत के बढ़ते दबदबे से चीन को हो रही है बोखलाहट ,यहां जाने 2008 और 2014 के बीच के भारत में फर्क
आज भारत अपनी सेनाओं के साथ चीन के विरोध में मजबूती से खड़ा है।

कांग्रेस के नेता इन भारतीय सेनानियों के बलिदान को विफल साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं यह वही कांग्रेस है जिसके शासन में तैयारी से 43000 वर्ग किलोमीटर भू भाग चीन को तोहफे में दे दिया गया जहां चीन लद्दाख के कुछ हिस्से में अपने दावे को मजबूत करने के लिए हर मौसम में परिवहन के लिए सड़कों और पुलों का निर्माण कर रहा है वहीं कांग्रेसी नेता मूकदर्शक बना रहा सीमांत क्षेत्र में मिशन मोड में सड़कों को विकसित करने के बजाय उन्होंने सीमाओं को परिभाषित ना कर चीनी रणनीति का सहाई साथ दिया परिभाषिक सीमा के अभाव में चीन भारत की सीमाओं का बार-बार उल्लंघन करता रहा है आज सीमा पर बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जा रहा है यह सब एक कुशल प्रशासन और मजबूत सरकार की देन है और यह पूर्णतया तथ्यों पर आधारित है वर्ष 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने पर भारत की चीन नीति में उल्लेखनीय बदलाव हुआ।

सीमा सड़क संगठन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के 100 किलोमीटर की दूरी तक सीमा की सड़कों के निर्माण की स्वीकृति दे दी सेनाओं के ऑपरेशन के लिए लिहाज से महत्वपूर्ण 66 सड़कों को बनाने का रास्ता साफ कर दिया गया वर्ष 2017 के बाद से भारी निर्माण गतिविधि को अंजाम दिया गया वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास सैनिक और सेना सामग्रियों की सुगम आवाजाही के लिए बुनियादी ढांचे के विकास हेतु बजट का आवंटन में भी वृद्धि की गई इस क्षेत्र में वर्ष 2008 से 14 के बीच केवल एक सुरंग का निर्माण किया गया नरेंद्र मोदी की सरकार के कार्यकाल में अब तक 6 सुरंगो का काम पूरा किया जा चुका है तक 19 सुरंगों को बनाने की योजना है भारत ने 2008 से 2014 के बीच 7270 मीटर की तुलना में 2014 से 2020 के दौरान 14450 मीटर की दूरी के बराबर पुलों का निर्माण किया है।

वर्ष 2008 से 2014 के बीच 3610 किलोमीटर की तुलना में 2014 से 2020 के बीच 4764 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया गया इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चीन इस से बौखला गया है चीनियों को यह उम्मीद नहीं थी कि भारत इस दुर्गम इलाके में और कठिन परिस्थितियों में अपनी परियोजनाओं को पूरा कर पाएगा वास्तव में व्यस्त सीमा पर चीनियों की आक्रामक व्यवहार से पता चला है कि ड्रेगन भारत के आसपास पहुंचने में असमर्थ है।

चीन के नेतृत्व में भारत का नेतृत्व निश्चित तौर पर निशक्त और बेअसर मन जाता था मनमोहन सिंह के दौरान इसी संदेहपूर्ण परवर्ती को देखते चीन की सेना ने भारत की जाने पर करीब 600 बार घुसपैठ की उन्हें रोकने के बजाय हमारे सैनिकों को देख दुश्मन को केवल झंडे दिखाने की अनुमति थी वर्ष 2013 में एक रिपोर्ट द्वारा पेश देश को पता चला कि चीन सेना ने भारत की 640 पर किलोमीटर तक जमीन पर कब्जा कर लिया है इसलिए आश्रय होता है जब राहुल गांधी मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हैं जब उनकी सरकार में समय भारतीय सेना कोई आजादी भी नहीं थी कि जिनकी मंसूबों पर पानी फेर सकें।

उदित हो रहे भारत को रोकने के लिए तथा अपने समुद्री पुल की रक्षा के लिए चीन हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को घेरने वाली वाणिज्य गौर से अन्य संपत्तियों का निर्माण किया गया था इस समय जब विश्व समुदाय द्वारा चीन के खिलाफ विश्व भर में कोरोना वायरस महामारी फैलाने ,महामारी को लेकर जानकारी के दमन के लिए उत्तरदाई ठहराया जा रहा है चीन विश्व समुदाय को डराने धमकाने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा से ही दुनिया में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है गोपनीयता सत्तावाद के धोखे में डूबे चीन के खिलाफ विश्वास की भारी कमी और बेहद नाराजगी है।

वहीं दूसरी और भारत एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में सामने आया है जो सामूहिक हिट के लिए अपनी प्रतिबद्धता के लिए अतिरिक्त प्रयास करने को हमेशा तैयार रहता है भारत चीनी खतरे का डटकर सामना करने के लिए तथा जरूरत पड़ने पर चीन को दमदार जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम है यह भारत नया भारत है जो चीन से डरने वाला नहीं है वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह बात स्पष्ट कर दी जब उन्होंने कहा कि हमारे लिए भारत की अखंडता और संप्रभुता सब कुछ है इसकी रक्षा करने से हमें कोई नहीं रोक सकता इस बारे में किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए भारत शांति चाहता है लेकिन भारत को उकसाने पर हाल ही में निर्णयाक जवाब दिया जाएगा।
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दुनिया में भारत के बढ़ते दबदबे से चीन को हो रही है बोखलाहट ,यहां जाने 2008 और 2014 के बीच के भारत में फर्क
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June 29, 2020
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